भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले।
इधर तो देखिए बहरे ख़ुदा किधर को चले॥