भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उठा लो / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उठा लो
आत्मा का यह फूल

जो तूफ़ान के थपेड़े से
धूल में गिर गया है
उठा लो इसे

चुनना तो
वृंत पर से
हो सकता था

मगर अब वह
वृंत पर नहीं
धूल पर है

उठा लो
आत्मा का यह फूल
धूल पर से

धूल को
वृंत की तरह
दुख भी नहीं होगा

और चुने जाने का दर्द
नहीं होगा फूल को
उठा लो

आत्मा का यह फूल
जो तूफ़ान के थपेड़े से
धूल में गिर गया है!