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उठै हबीड़ा / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
चीखां मारतो
इन्नै-बिन्नै भाजतो रैवै
दिन-रात
उठै हबीड़ा
खावै घमीड़ा
फेरूं नीं चेतै
काच साम्हीं जावण सूं डरै
माथो कुचरै
पण आपो-आप सूं
बाथेड़ा कुण करै
कुण सुणै
मांयलो हेलो।