उठो धनुर्धर! बैठ गए क्यों? / शिवम खेरवार
उठो धनुर्धर! बैठ गए क्यों?
उठो पार्थ! क्यों बैठ गए हो?
रण तो पूरा बचा हुआ है।
समर भूमि में भले तुम्हारे,
मन में अंतर्द्वंद चल रहा।
भाव-हृदय से टकराए हैं,
नयन नीर विष्यन्द चल रहा।
उठो! तुरत गांडीव उठाओ, वीर! हार मत मानो तुम।
समर शेष को पूर्ण करो, यदि; रग में 'शूरा' बचा हुआ है।
रण तो पूरा बचा हुआ है।
तुमसे ही आशा है सबको,
एक नया इतिहास रचोगे।
सूर्य, चंद्र सब जिसमें होंगे,
ऐसा अद्भुत व्यास रचोगे।
कर्म करो, कर्तव्य निभाओ, तरकश से फिर तीर निकालो।
धर्म चाहते सब नयनों का, स्वप्न 'अधूरा' बचा हुआ है।
रण तो पूरा बचा हुआ है।
कठिन समय की कठिन परीक्षा,
पूर्ण समर्पण माँग रही है।
स्वेद, रक्त की बूँद-बूँद से,
धरती तर्पण माँग रही है।
पार्थ! उठो! असमंजस छोड़ो, कब तक शोक मनाओगे।
निश्चित जीत तुम्हारी है, बस; इक 'कंगूरा' बचा हुआ है।
रण तो पूरा बचा हुआ है॥