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उठ, कर कूच !/ कन्हैया लाल सेठिया

कयो
मतो हारयौड़ै
बटाऊ नै गेलो
कांई हुवै थकेलो !
मैं तो चालुं
हर पल, हर खिण
को रात गिणूं न दिन
उठ, कर कूच
मनैं सूणीजै
इकलंग
तनैं बुलाती
मंजल रो हेलो !