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उठ चुका दिल मेरा ज़माने से / 'फ़ुगां'
Kavita Kosh से
उठ चुका दिल मेरा ज़माने से
उड़ गया मुर्ग़ आशियाने से
देख कर दिल को मुड़ गई मिज़गाँ
तीर ख़ाली पड़ा निशाने से
चश्म को नक़्श-ए-पा करूँ क्यूँकर
दूर हो ख़ाक आस्ताने से
हम ने पाया तो ये सनम पाया
इस ख़ुदाई के कार-ख़ाने से
तेरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ से निकले
ये तवक़्क़ो न थी दिवाने से
ऐ ‘फ़ुग़ाँ’ दर्द-ए-दिल सुनूँ कब तक
उड़ गई नींद इस फ़साने से