भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उठ जाते गिर गिर कर लोग / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उठ जाते गिर गिर कर लोग
नित चलते यायावर लोग

सच के पंकज इनमें खिलते
ये है पंकिल सरवर लोग

मेरे नगमों से पिघलेंगे
लगते जो हैं पत्थर लोग

नफ़रत को, उल्फ़त में बदलें
ये अनुरागी शाइर लोग

वहशी भी मानव बन जाते
जागें जब ये बर्बर लोग

लुट जाते जो औरों के हित
जी जाते हैं मर कर लोग

उर्मिल खुशियों की खेती कर
लें लें झोली भर भर लोग।