भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उठ जा मेरी राजदुलारी / संजीव 'शशि'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरज निकला पंछी गाएँ,
फैली है उजियारी।
उठ जा मेरी राजदुलारी॥

अलसाई-अलसाई सर,
मेरे काँधे पर धर ले।
मुस्काकर अपने पापा,
को बाँहों में भर ले।
आजा ज़रा निहारूँ जी भर,
सूरत प्यारी-प्यारी।

जल्दी से उठ जाओ गुड़िया,
बहुत हो चुका सोना।
जल्दी से मंजन करलो फिर,
करो नहाना-धोना।
करो नाश्ता फिर करनी,
विद्यालय की तैयारी।

बड़ा नाम करना है जग में,
बिटिया रानी पढ़कर।
शिखर चूमना है तुमको,
हिम्मत से आगे बढ़कर।
नन्ही-नन्ही बाँहों में,
भरनी है दुनिया सारी।