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उड़के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते हैं / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
उड़के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते हैं
जैसे इस मुल्क से मज़दूर अरब जाते हैं
हमने बाज़ार में देखे हैं घरेलू चेहरे
मुफ़लिसी <ref>दरिद्रता,ग़रीबी</ref>तुझसे बड़े लोग भी दब जाते हैं
कौन हँसते हुए हिजरत <ref>अपने वतन को छोड़ कर जाना</ref>पे हुआ है राज़ी<ref>माना है</ref>
लोग आसानी से घर छोड़ के कब जाते हैं
और कुछ रोज़ के मेहमान हैं हम लोग यहाँ
यार बेकार हमें छोड़ के अब जाते हैं
लोग मशकूक <ref>संदिग्ध</ref>निगाहों <ref>दृष्टि</ref>से हमें देखते हैं
रात को देर से घर लौट के जब जाते हैं
शब्दार्थ
<references/>