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उड़ती चील हवा के संग / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
उड़ती चील हवा के संग,
भूरा-भूरा इसका रंग।
पलक झपकते नीचे आती
पलक झपकते ऊपर जाती,
मुन्नी के हाथों की रोटी
मार झपट्टा यह ले जाती,
इसकी फुर्ती देख-देखकर
रह जाते सब बिल्कुल दंग।
यह शिकार में बड़ी सयानी,
डर से सबकी मरती नानी,
चूहे, मेढ़क और कबूतर
इसे देखकर भरते पानी,
कभी गिद्ध से नहीं झगड़ती।
कमजोरों को करती तंग।