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उड़ने दो पतंग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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44
मोह या माया
जीवन की सुरभि
केवल तुम्हीं।
45
प्रलय-मेघ
बरसे धारासार
तुम्हीं किनारा।
46
डूबी जो नौका
छोड़के भागे सभी
तुम्हारे सिवा।
47
निर्मल मन
सहता है तपन,
औरों ने बाँटी।
48
मैं'भी मिटेगा
'तुम' भी क्या रहेगा
रहेंगे हम।
49
दो पल देना
केवल हम रहें
कुछ न कहें।
50
मरे सपने
साँस ली है आखिरी
बची आशाएँ।
51
नया सूर्य ले
आओ भोर बुलालें
रँगे गगन।
52
ऊषा ने पूछा-
तुम क्यों हो उदास
पी लो मुस्कान।
53
कह न सके
कथा हम मन की
वक़्त ने छला।
54
अधूरी रही
हर साध मन की
जिए, न मरे।
55
भावी प्रबल
आपदा में छुपा है
कोई तो हल।
56
डोर न तोड़ो
उड़ने दो पतंग
जीवन -संग।