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उड़ान का साथ / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
मन की उड़ान
ऐसी ही तो हैं
इन पंछियो-सी
तभी तो
सभी सीमाओं को पार कर
ये मन उड़ा चला जाता हैं
तुम तक
मेरी सरहदों को पार कर
हर बार
कैसे रोकूँ मन को
जो अनंत आसमान पर
हौसला लिए
उड़ चला हैं
क्षितिज की ओर
आसमान के नए रंगों की तलाश में
जो पहले कभी देखें नहीं
मन पंछी-सा जो कभी
सीमाओं पर बैठ
आसमाँ को निहारता था
आज भर रहा हैं
एक नयी उड़ान
अनंत संभावनाओं की
एक साथ के अहसास भर से...