उपनयन-संस्कार में सभी कुटुंब, संबंधी, देव-पितर आदि आ गये हैं। अभी लड़के का मामा नहीं आया है। उसकी माँ समझती है कि मेरा भाई अपनी निर्धनता के कारण अभी तक नहीं आया। उसे अगर पहले से जानकारी रहती, तो अपने से साड़ी खरीदकर भाई को दे देती, जिससे उसकी प्रतिश्ठा बचती और मायके की शिकायत नहीं होने पाती। इसी समय उसका भाई आवश्यक चीजों के साथ आ जाता है और यह उद्गार व्यक्त करता है कि मैं अपने भाँजे के उपनयन-संस्कार में कैसे नहीं आता।
उपनयन तथा यज्ञादि में लड़के की माँ अपने मायके से आई हुई साड़ी ही उस दिन पहनती है।
उड़ि उड़ि हित<ref>उड़कर</ref> कागा सगुनियाँ, कि नित उठि भाखहुँ<ref>बोलो</ref> हे।
ललना रे, केकरा घर बाजै बधावा, कहाँ रे कहाँ नेओतब हे॥1॥
पहिने जे नेओतब देब लोग, औरो पितर लोग हे।
ललना, तखन नेओतब नैहर लोग, औरो भाई लोग हे।
ललना रे, तखन नेओतब ससुर लोग, औरो गोतिया लोग हे॥2॥
पहिने जे आयत देब लोग, औरो पितर लोग हे।
ललना रे, तखन जे आयत नैहर लोग, औरो भाई लोग हे।
ललना रे, तखन जे आयत ससुर लोग, औरो गोतिया लोग हे॥3॥
जऊँ हमं जनितउँ<ref>जानती</ref>, कि भैया मोरा निरधन हे।
ललना रे, घरहिं में चुनरी रँगाबितों<ref>रँगवाती</ref> भैया अगुवाबितों<ref>आगे जाकर मिलती या स्वागत करती</ref> हे।
ललना रे, खालियो<ref>खाली</ref> हाथ भैया मोर आबितै, माड़ब मोरा सोभित हे॥4॥
खोलु खोलु बहिनों दछिनचीर<ref>पहनी हुई पुरानी साड़ी; एक प्रकार की साड़ी</ref>, पहिरू पितंबर हे।
ललना रे, भगिना के छेलै<ref>था</ref> उपनायन<ref>उपनयन, जनेऊ</ref>, केना<ref>किस प्रकार</ref> नहिं आबितौं<ref>आता</ref> हे॥5॥