भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उड़ीक / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब छोड़ो भाईजी !
कुण गिनरत करै
इण जगती में
थारी रीस री ।

रळ सको तो
एकामेक हुय जावो
इण मुखौटा आळी भीड़ में
का पछैं म्हारै दांई
खींच लेवो मून
इण पतियारै सागै
कै कदैई तो आवैलो कोई
म्हारी पीड़ परखणियो आवै
भलांई आभै सूं।