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उड़ै छै चितचोर / अनिल कुमार झा

पुरवैया संग बदरा उड़ै छै चितचोर।
नदिया किनारी पर झूमै बसवारी
फुनगी चिड़या ते पिया केरी प्यारी,
मातली झूमै छै दिशा-दिशा शोर।
अखनी यहाँ छेलै, अखनी गेलै
क्षणै में लागै कि हित कुटुम भेलै,
किंछा किनारी पर कत्ते हिलोर।
कारी बदरिया के प्रेमी हजारों
सुख दुख बिसरी के ओकरे निहारों,
देखी देखी मोन हुअेॅ कत्ते विभोर।
बिन बदरा के ते जीवन सूनोॅ
ओकरा देखी के सपना बूनोॅ,
एकरे से घुरतै ई भोरकोॅ इंजोर।