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उड़ उड़ रे म्हारा काळा रे कागला / राजस्थानी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे

उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे

उड़ उड़ रे
म्हारा, काळा रे कागला
कद म्हारा पीव्जी घर आवे
कद म्हारा पीव्जी घर आवे , आवे र आवे
कद म्हारा पिव्जी घर आवे

उड़ उड़ रे म्हारा काळा र कागला
कद माहरा पीव्जी घर आवे

खीर खांड रा जीमण जीमाऊँ
सोना री चौंच मंढाऊ कागा
जद म्हारा पिव्जी घर आवे, आवे रे आवे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
म्हारा काळा र कागला
कद माहरा पीव्जी घर आवे

पगला में थारे बांधू रे घुघरा
गला में हार कराऊँ कागा
जद महारा पिव्जी घर आवे

उड़ उड़ रे
महारा काळा रे कागला
कद महारा पिव्जी घर आवे
उड़ उड़ र महारा काला र कागला
कद महरा पिव्जी घर आवे

जो तू उड़ने सुगन बतावे
जनम जनम गुण गाऊँ कागा
जद मारा पिव्जी घर आवे , आवे र आवे
जद म्हारा पिव्जी घर आवे
 
उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे

उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे महारा काळा रे कागला
कद म्हारा पिव्जी घर आवे

उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे

उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे म्हारा काळा रे कगला
जद म्हारा पिव्जी घर आवे