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उड़ गए बालो-पर उड़ानों में... / देवी नांगरानी

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उड़ गए बालो-पर उड़ानों में

सर पटकते हैं आशियानों में ।


जल उठेंगे चराग़ पल-भर में

शिद्दतें चाहिएँ तरानों में ।


नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते

घर बदलने लगे दुकानों में ।


धर्म के नाम पर हुआ पाखंड

लोग जीते हैं किन गुमानों में ।


कट गए बालो-पर, मगर हमने

नक्श छोड़े हैं आसमानों में ।


वलवले सो गए जवानी के

जोश बाक़ी नहीं जवानों में ।


बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर 'देवी'

घर बँट गया कई घरानों में ।