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उड़ गये रंग हुए श्वेत हम / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
उड़ गये रंग हुए श्वेत हम
हो गये सूखकर रेत हम।
कब भरे, कब पके, कब कटे
आज परती पड़े खेत हम।
वक्त़ ने मार डाला हमें
आदमी से हुए प्रेत हम।
क्या नयन बोलते आपके
वो समझते हैं संकेत हम।