भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उड़ जा रे कागा लेजा रे तागा / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
उड़ जा रे कागा लेजा रे तागा जांदा तो जइये मेरै बाप कै
मैं तो नाम न जाणू बेब्बे गाम ना जाणू कौणसी तो मैड़ी तेरै बाप की
नाम बताद्यूं गाम बताद्यूं मैड़ी तो बताद्यूं मेरे बाप की
एक ऊंची सी मैड़ी लाल किवाड़ी, वो घर कहिए मेरे बाप का
एक मेरे बाप के चार धीअड़ थी, चारों तो ब्याही चारों कूट में
एक बागडण में दूजी खादर में तीजी हरियाणा चौथी देस में
मेरे सिर पर कागा हाथ भुआरी भरूंट भुवारूं में खड़ी खड़ी
मैं सट सट मारूं डस डस रोवूं रोवूं नाई का तेरे जीव नै