उड़ ज्या काग मंडेरे पर तै / करतार सिंह कैत
उड़ ज्या काग मंडेरे पर तै, मत ना देर लगावै
पिता नै न्यूं कहिये रे कागा तेरी बेटी तनै बुलावै...टेक
तू पक्षी अनबोल तेरे तै के घणा बोल कै कर ल्यूंगी
ले आया मेरा बाप अड़ै दो बात खोल कै कर ल्यूंगी
ना आया तै ज्यान मेरी फंदे पै तोल कै धर ल्यूंगी
चौड़े के म्हं दिख र्ही सै मैं थोड़ दिन म्हं मर ल्यूंगी
जल्दी भेज दिये बाबुल नै जै शान देखणी चाह्वै
पिता नै न्यू कहिये...
मनै सासु, ननद, जेठानी पिट्टें न्युंकै भूखे घर की आई क्यूं
मेरा पति लफंगा न्यू कहैर्या के बता बलेरो ल्याई तूं
कौण सी मानी दाब पिता इन बदमाशां कै ब्याही क्यूं
धन के लोभी नहीं छिकैंगे चाहे सारी भेज कमाई तूं
अड़ै सौ दो सौ की बात नहीं ये कइयों लाख मंगावै
पिता नै न्यू कहिये...
करूं खेत-क्यार घर का धंधा, फेर पशुओं किसा सलूक मिलै
मनैं ना पीवण नै पाणी कागा, ना पेट भराई टूक मिलै
हाथफोड़ दो रोटी मांगू जब नहीं पेट की भूख झिलै
मैं छाती म्हं को आप काढ़ल्यूं मनै जो पिस्तौल-बन्दूक मिलै
ईब मनै जलाकै मारैं कसाई भाई तेल छिड़कना चाह्वै
पिता नै न्यू कहिये...
मैं तो खानदान की बेटी थी, कित ब्याह दी ऊत निमाणे म्हं
आज गामां के म्हं बसे दरिंदे यो रह थे कदी सिमाणे म्हं
इब केस दहेज का दायर कर पिता रपट लिखा दे थाणे म्हं
इन उत्तां पै सतपुत्र बावै आज्या अकल ठिकाणै पै
बाबा साहब के कानून पढ़ करतार सिंह समझावै
पिता नै न्यू कहिये...