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उडीक / रामस्वरूप किसान

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थारै-म्हारै
बिचाळै रौ पड़दो
धरती सूं आभौ जोड़ती भींत,

थारै-म्हारै
बिचाहै रो आंतरों
लोक सूं लोक जोड़ती सुनियाड़

थूं ई बता
कीकर मिलण हुवै
थां सूं

पण फेर ईज
जिवड़ौ नीं टिकै

थारी उडीक
म्हारौ धन बणगी।

जद-जद
बायरियै कान बजाया
खुदौ-खुद म्हारौ
सांस थम्यौ
अर म्हारै ई
काळजै री धड़कण
थारै पगलां री
आहट बणगी।
स्यात याद हुसी थानै
आपणी बा बंतळ
जकी रौ सार हुंवतौ
‘मौत औरां खातर है ’

म्हैं तो
उणी‘ज सार नै
साचोट मान
थारी उडीक नै
काळजै लगायां बेठ्यौं हूं।