भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उण दिन / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उण दिन
झूंपड़ी री खिड़की सूं
काळजै उतरी
याद
पग पकड़या,हाथ जोड़या
घणी करी मनवार
पण जद भागी ही बा
काळजै में लगाय लाय
उणनै फेरूं
मन मांय
कियां लेवूं बसाय
बगत बदळग्यो
याद रो रूप ंबदळग्यो
उण टैम री याद
आज दुख बणगी
जूण तो उणरै
बिना ई सरगी।