भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उतरहि मेघ गरजि गेलअ हो / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वर्षा ऋतु आ गई है। मेघ गरज रहे हैं। आँगन में बँूदें पड़ रही हैं। लेकिन नायिका का प्रियतम परदेश में है। बारह वर्ष बीत जाने पर उसका पति आता है। उसके पति की माँ उसके स्वागत-सत्कार के लिए दौड़ पड़ती है। लेकिन, उसकी मानिनी पत्नी घर से बाहर उसके स्वागत में नहीं जाती। उसे विश्वास है कि उसका पति उससे मिलने आयगा ही। पति समझता है कि पत्नी रुष्ट है, इसलिए वह सोनार को गहने बनाने के लिए, दरजी को चोली सीने के लिए रँगरेज को चुनरी रँगने के लिए बुलवाता है, लेकिन पत्नी कहती है कि ये चीजें तुम अपनी माँ, बहन और भाभी को दो। मैं तो तुम्हारी प्रीति की भूखी हूँ, मेरी प्रीति जुड़ा दो। पत्नी के लिए सबसे कीमती चीज उसके पति का प्रेम है। अगर किसी नारी को यह प्राप्त है, तो उसके शृंगार-प्रसाधन की सभी चीजें तुच्छ हैं।

उतरहिं<ref>उत्तर दिशा की ओर</ref> मेघ गरजि गेलअ हो।
ऐंगनाहिं बुनियाँ<ref>बूँदे</ref> बरसि गेलअ, पिआ परदेस गेलै हो॥1॥
बारह बरसेॅ कुँअर लौटल हो।
माइ दौरल पीढ़ा पनियाँ<ref>पीढ़ा और पानी</ref>, बेटा घुरि<ref>लौटकर</ref> घर ऐलै हो।
बहिनि दौरल पान साजिये, भइया घुरि घर ऐलै हो॥2॥
कवन गाम में बसे, सोनरबा भइया हो।
धानि रे जोखे<ref>योग्य, लायक</ref> हँसुला गढ़ाइ देहो, धानि चित भोर<ref>विस्मृत; भूल गई</ref> भेलअ हो॥3॥
से हँसुला पिन्हतौ<ref>पहनेगी</ref> तोरअ, माइ बहिनियाँ जेठ भौजो हो।
हमूँ रे धनि पीरित के भूखलि, पीरिती जुरा<ref>तुष्ट; तृप्त; ठंडा</ref> लेहो हो॥4॥
आँहो, कटिहाँर<ref>कटिहार; पूर्णिया जिले का एक प्रमुख स्थान</ref> में बसे, दरजिया भैया हो।
धानि रे जोखे चोलिया सिलाइ देहो, धानि चित भोर भेलअ हो॥5॥
सेहो चोलिया पिहन्तौ तोरअ, माइ बहिनियाँ जेठ भौजो हो।
हमूँ रे धानि पीरित के भूखलिं, पीरिती जुरा लेहो हो॥6॥
बारसोय<ref>बारसेई; बंगाल का एक स्थान</ref> में बसे, रँगरेजबा भैया हो।
आँहो, धानि रे जोखे चुनरी रँगा देही, धानि चित भोर भेलअ हो॥7॥
सेहो चुनरी पिन्हतौ तोरअ, माइ बहिनियाँ जेठ भौजो हो।
हमूँ रे धानि पीरित के भूखलि, पीरिती जुरा लेहो हो॥8॥

शब्दार्थ
<references/>