उतरा अकास से तुरान बदरा / जगदीश पीयूष
उतरा अकास से तुरान बदरा।
हे हो लगतै असढ़वा फुरान बदरा॥
राम जी की घोड़ी चली निकरी जड़ेरी।
कांव कांव बोलै लाग कलुआ बड़ेरी॥
बछरू कि याद म रंभाइ लाग गइया।
दुधवा कै नदिया बहावै लाग डेरी॥
पोर पोर धरती क जियरा हरेर भा।
पेड़ रूख पात फहरान बदरा॥ हे हो लगतै...
पावस म पिया पिया बोला थै चिरैया।
नदिया उठान मेडरान भँवरैया॥
पनिया के परतै सबै जिब जागा।
बिछिया फेटार काट खात हैं दतैया॥
गर्मी बुताइ गइ बुताइ गै अंधोरी।
घूमि घूमि बरसै जुड़ान बदरा॥ हे हो लगतै...
बड़ी मुँह बोलिन के बड़ा बड़ा गोइयां।
सुगना परखिये लबार बड़े टोइयां॥
बीति गवा राज अंगरेजवा नबबवा क।
अब तौ सबै के घरे बना थै रसोइया॥
बरसै मघा और परसै महतारी।
बेटवा अघान डेकरान बदरा॥ हे हो लगतै...
महं महं महकि उठी है फुलवारी।
पलना में ललना भरा थै किलकारी॥
बोइ गईं सगरौ धरतिया कै कोखिया।
कन्हवा पे हलधर हथवा कुदारी॥
भौजी लगावा थै निरावा थै ननदिया।
खेतवा किसान धान पान बदरा॥ हे हो लगतै...