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उतर आएगी उनकी आँख में तश्वीर अब मेरी / कैलाश झा 'किंकर'
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उतर आएगी उनकी आँख में तश्वीर अब मेरी
सँवर जाएगी लोगों देखना तक़दीर अब मेरी।
मिलाकर हाथ मंज़िल तक चलेंगे हमसफ़र बनकर
बिखर जाएगी ख़ुद ही टूटकर ज़ंजीर अब मेरी।
बसेगी जब निराली बस्तियाँ उल्फ़त-मुहब्बत की
करेगी ख़ुद गुले-गुलज़ार यह तहरीर अब मेरी।
बहारें झूमकर आईं चमन में रंग भरने को
सभी की आँख में भरती चमक तस्ख़ीर अब मेरी।
कभी तारीफ़ के अल्फ़ाज़ भी मिलते नहीं जिनको
बताई जा रही फिर भी उन्हें तासीर अब मेरी।