भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उतर आया फागुन / अनामिका सिंह 'अना'
Kavita Kosh से
फूले हैं कचनार
उतर आया फागुन,
खोले पंख हज़ार
उतर आया फागुन ।
हुई गुनगुनी धूप
चढ़ा कुछ पारा है,
किरणों ने सूरज का
प्रेम पसारा है ।
छज्जे-छज्जे बढ़े
गुलाबी पन्ने हैं,
गुपचुप खींचे गए
प्रेम के कन्ने हैं ।
देहरी आँगन द्वार
उतर आया फागुन ।
खेतों-खेतों आस
उमग पियराई है,
मेड़ों-मोड़ों मिलती
दिखे मिताई है ।
शाख-शाख पर बौर
आँख में डोरे हैं,
जगे चाह के सपन
कुँआरे कोरे हैं ।
सब पर मन्तर मार
उतर आया फागुन ।
कुदरत ने क्या सोच
रंग यह घोला है,
दिशा-दशा में
फागुन-फागुन रोला है ।
इसके चलते
हर शोखी को पंख लगे,
कैसा साहूकार
सभी मन अचक ठगे ।
लेकर लाल बुखार
उतर आया फागुन ।