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उतारू / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानर नानी, तरी नानार नानी,
तर नार नानी, खेल रे गबेल खेलन हम रे।
केखर आँगन झालरी,
केखर आँगन झालरी,
केखर छीतल छाय खेल रे
राजा के आँगन झलरी,
 राजा के आँगन झलरी,
रानी क छीतल छाय खेल रे
दै हो सास कुदरी,
दै हो सास कुदरी,
हम हड़द खनन जान॥खेल रे
दै हो सास मुसरी,
दै हो सास मुसरी,
हम हड़द कटन जान खेल रे
दै हो सास सुपरी,
दै हो सास सुपरी,
हम हड़द पछनन जान खेल रे
दै हो सास खोरली,
दै हो सास खोरली,
दै हो सास खोरली,
हम हड़द खेलन जान खेल रे।
तरी नानार नानी, तर नार नारी,
खेल रे गज़बेल खेलन हम रे।

शब्दार्थ- केखर=किसके, झलरी=झिल-मिल, छीतल=शीतल, कुदरी=कुदाली, हड़द=हल्दी, मुसरी=मूसल, सुपली=सूपा, खोरली=कटोरा, गज बेल=पिचकारी, होली।

हम भर-भर पिचकारी होली खेल रहे हैं। आज किसका घर आँगन खुशियों से झिलमिला रहा है। किसके आँगन में आज ठंडी छाँव गहरा गई है। अरे ! यह तो अमूक राजा का आँगन खुशियों से झिलमिल मिला रहा है, उसकी रानी के आँगन में ठंडी छाँव फैली है। यहीं होली खेलने का मन है। बहू कहती है- सासु जी! हमें कुदाली दे दो। हम हल्दी खोदने जायेंगे। हमें मूसल दे दो। हम हल्दी कूटने-पीसने जाएँगे। हमें सूपा दे दो, जिससे हल्दी को पछीटेंगे, बुहारेंगे। सासू जी! हमें कटोरे दे दो। उसमें हल्दी घोलकर होली खेलने जायेंगे।