भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उतार / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
उतार
नहीं सोता सूर्य
किसी लहर के
गर्भ में
दूर खड़ा
विहँसता है
व्याकुल उछाह
और
उतराव देखता।