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उतै अकेले कुञ्ज में बैठे नन्द किसोर / सुन्दरकुवँरि बाई

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उतै अकेले कु´्ज में बैठे नन्द किसोर।
तेरे हित सज्जा रचत विविध कुसुम दल-जोर॥
विविध कुसुम दल-जोर तलप निज हाथ बनावत।
करि करि तेरो ध्यान कठिन सों छिनन बिहावत॥
जाके सब आधीन सुतो आधीनौ तेरे।
जिहिं मुख लजि ब्रज जियत वहै तो मुख रुख हेरे॥