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उत्कर्ष / शीतल साहू

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जैसे पाषाण को रूप दे शिल्पकार
जैसे कुम्हार दे माटी को आकार
जैसे लोहे को तपाकर, फौलाद बनादे लोहार
जैसे सोने को आभूषण में ढाल दे सोनार।

वैसे ही ठाकुर, करो हम पर उपकार
कर हमारे चित्त का परिष्कार
दिखा दो, साकार में निराकार
करा दो, हमे ईश्वर का साक्षात्कार। (ज्ञान योग)

ठाकुर, कर दो हमारे जीवन का उद्धार
हो आप, इस भटकती नैय्या के खेवनहार
लगा दो, इस जीवन का बेड़ापार
कर दो, जीवन हम सबका साकार। (भक्ति योग)

ठाकुर दीजिये हमें आशीष
निश्चिंत कटे दुख और डटकर करें संघर्ष
बन जाये हम 'अ' शोक और संयमित हो हर्ष
बने हम मानवता के दूत और प्राप्त करें प्रकर्ष
हो सबका उत्थान और हो हर मानव का उत्कर्ष।
(कर्म और राज योग)