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उत्तरा / द्वितीय सर्ग / भाग 1 / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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विराटक राज-सभा:

राजित राज-सभा बिच नृपति विराट, सचिव सामंत।
भट उद्भट, नीतिज्ञ सभासद् कलावन्त श्रीमन्त॥
पण्डित पुरहित, प्रथित कलाविद् बन्दी-मागध वृन्द।
जन जनपद प्रतिनिधि नागरिक-प्रमुख जत-जुटल अमन्द॥

नीति-रीति दैशिक-वैदेशिक चर्चा चारु चलैछ।
आलोचन-प्रत्यालोचन बिच तथ्य बिचार सुझैछ॥
धर्म-अधर्मक संघर्षहु, दैवी-आसुरी विचार।
कतय कोना की चलइल सम्प्रति लोक-वेद व्यवहार॥

मागध-माथुर चेदि-विदर्भक द्वारकाक प्रति छोह।
कुरु-पांचाल संगहि चर्चा पुनि पाण्डव-कौरव द्रोह॥
पूर्व-पच्छिमक दछिन-उत्तरक देश-विदेश प्रसंग।
आर्य-अनार्य सुजन-दुर्जन आस्तिक-नास्तिक अनुषंग॥

काल-यवन आक्रमण कच्छ-सीमा पर कोना दुरन्त।
बिदिग् बायवी संशप्तक यौधिक अवरोध उदन्त॥
पुनि देशक रक्षा हित की कर्तव्य राज्य केर युक्त।
अश्ववाहिनी योजना-कुशल, मल्लहु करिअ नियुक्त॥

कृषीबलक सम्वल पशुधनक उचित संग्रह विस्तार।
गोधन-सवर्धन हित चाही विशेषज्ञ पर भार॥
मेला कुमार युवक उत्तर युवराजक गहु अधिकार।
श्वेतकेतु गृहनीति सम्हारथु अर्थ-कोष संभार॥

तखनहि क्यौ अन्तःपुर अधिकारी दरबारी आप्त।
कहि उठला, प्रभु! ळमर विभागहुमे अभाव किछु व्याप्त॥
पाकालय भांडारिक पद अछि रिक्त, चहिय क्यौ विज्ञ।
एहिना शृंगारिणी अपेक्षित धनि जनि कला-अभिज्ञ॥
कला प्रभाग प्रभारी कहलन्हि, एम्हरहु एक अभाव।
नृत्य-कुशल संगीत-कलाविद दु्रत वांछित अछि आब॥
कला-प्रवीणा कुमरि नवीना उत्तराक रुचि देखि।
नृत्य शिक्षणक हित हो योजित योग्ये व्यक्ति परेखि॥

कत प्रसंग चर्चित अनुषंगहि कत किछु विषय उपदेश।
भाव-अभाव, योग-अभियोगहु, साधारणहु विशेष॥
तावत दौवारिक प्रवेश कय विहित सूचना देल।
आयल छथि कार्यार्थी किछु बाहरसँ सेवा लेल॥

सेवा-शरणार्थी:

पंच पुरुष छथि जनिक संगमे श्यामा ललना एक।
पंच तत्त्व जनु संगत एकत प्राण शक्तिहिक टेक॥
प्रथम प्रतिष्ठित पुरुष शान्त निर्मल जनु गगन उदार।
दोसर छथि उद्वेगी पवन समान शक्ति संचार॥

तेसर तेजस्वी जनु अग्नि-शिखा उद्दीप्त शरीर।
अपर युगल छथि धरणि धारणा प्रकृति शीत जनु नीर॥
संग तनिक वनिता विलक्षणा चेतनाक जनु अंश॥
आयल छथि विराअ पुरुषक जनु सन्निधि जीव चिदंश॥

नृप उत्सुक संकेत सचिवके कयल बुझिंअ संधानि।
के छथि, की छथि, कत की अनुभव, कुलशीलहुँ अनुमानि॥
बुझिबुझि कयल निवेदन तत्क्षण, छथि जे जन से आप्त।
बनबासी पाण्डवक भृत्यगण वृत्ति हेतु संप्राप्त॥

सदय हृदय भूपति-अनुमतिएँ कयलन्हि क्रमहि प्रवेश।
आकृति-कृति ओ वचन-रचनसँ परिचय विदित अशेष॥
प्रथम कंक द्विज अग्रज द्योतित द्युत कलाक विशेष।
स्वयं अपन लग कयल नियोजित महाराज सावेश॥

मध्य वल्लव मल्ल प्रधान पाक-संस्थान निधान।
देखि मल्लशाला-महानसक हेतु नियुक्त महान॥
वृहन्नला अभिघान कला-कोमला नृत्य सगीत।
कृतव क्लीव अक्लीव प्रभावहु रोचक समय क रीत॥

अर्जल अर्जुन पद अन्तःपुर कला-शिक्षणक लेल।
राजसुता उत्तरा जनिक अन्तेवासिनि छलि भेल॥
पुनि उत्तर कुमार हित सहचर चतुर नकुल धय नाम।
ग्रन्थिक, रथिक तुरंगम दलक प्रवन्ध करिथ अभिराम॥

गोधन संवर्धन हित सहदेवहु डेवल दरवार।
तन्तिपाल बनि श्वेतकेतु केर अन्तरंग सहकार॥
सैरन्ध्री छथि स्वयं द्रौपदी शृंगारक सहकारि।
तनिक नियोजित उचित सुदेष्णा रानिक लग सविचारि॥