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उत्तरा / प्रथम सर्ग / भाग 2 / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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विराट नगर

ई थिक नगर विराट, जकर राजा विराट छथि।
गुण-मणिमंडित, रिपुवध पंडित, बलक ठाठ छथि।
नगर सगर अछि सजल, सजल नद-नदी घाट अछि।
चंद्रन रससँ सिंचल, रचल निर्धूलि बाट अछि॥
दुर्ग दुर्ग, बड़, अति उतुंग गुम्बज नभ चुम्बित।
जतय अटारी टारि-टारि धन उन्नत लम्बित॥
फटिकक फाटक द्वार-द्वार तोरण रुचि मण्डित।
देखि सुशोभा अभर-नगर नागरिक अचम्भित॥

अछि प्राचीर चीर सभ परिसर चित्रावरणा।
चमचम करइत नानाविध आयुध-विभूषणा॥
मस्तक विजय-स्तम्भ जकर पुनि नयन झरोखा।
वातायनके देखि कानहिक होइछ धोखा॥

दन्त सौधकेर पंक्ति, अधर मृदु अरुण पताका।
जाँध कंचनक खाम्ह रत्न-आभा वृत पाखा॥
रोमावलि उद्यान, कूप नाभी रस भरिता।
वन्दनवार किंकिणो, कृश कटि मली सुरचिता॥

हरित-भरित उपवन विचित्र परिधानी धानी।
पहिरि विहरि रहली धनि-धनि नगरी रजधानी॥
पुरुष विराअक प्रीति रीति नित मुदित अनन्या।
पुरी परम रमणीक नवल रमणी सन धन्या॥

नगर जलाशय, नागर-नागरि बदन कमल जत।
शुचि शैवाल सुकेशी-वृन्दक अलक लुलित कत॥
जलचर गज-रथ-हय पदाति चतुरंग सुसज्जित।
सेनानी कीचके कीच अछि जतय निमज्जित॥

विराट परिवार

नगर पर्वते बनल, विराटे तुंग शिृंछ छथि।
उत्तर-श्वेतकेतु दुइ नृप-सुत पार्श्व अंग छथि॥
सैन्य कटक अछि कटक, महल गिरि-तरु अनंत अछि।
सिंह व्याघ्र सैनिक सभ रिपु मृग दबल अन्त अछि॥

नगर-कमलदह बीच कमलिनी बनलि सुदेष्णा।
सखौ सहचरी पुरइन दलसँ बेढ़लि सतृष्णा॥

सुरभि उत्तरा सरस किशोरी नवल बयस शुचि।
मलय समीर धीर दक्षिण के परसत रचि रुचि॥

उत्तरा:

चकित करंगी सदृशहि चंचल जकर दृगंचल।
वयस वसन्त प्रमाण मलय सुरभित उर-अंचल॥
मदन-गणित पंचांग मध्य तिथि सुदि चतुर्दशी।
तारुण्यक पूर्णिमा समीपे उदित शुचि शशो॥

हँसितँहि जकरा झहरि पड़ै अछि फूलक थौका।
तकितहि जकरा चमकि-चौंकि पड़पइ बिजलौका॥

बजितहि जकरा वेणु विपंचिक हो झंकारे।
भृकुटि चढ़वितहिँ होय मदन-धनुषक टंकारे॥

गतिक पाठ पढ़बालय जुटइछ हंस-मण्डली।
जकर स्वर क अनुकरण मात्र कोकिलक काकली॥

जकर कपोलक लालिमाक प्रतिबिम्ब सेव फल।
अधर हास-कन बिछइत चुनइत जूही उज्जवल॥

ककर कान्तिसँ जगमग अन्तःपुर अछि सगरो।
तुलनामे ललना न एक नहि गामो-नमरो॥

ककर रूप-गुण नयन-श्रवण सर्बस्व मनोरम।
सुषमा सरिता, लता बनलि लावण्यक अनुपम॥

ककर चरणमे नृत्य नितय अपनहि बसि गेले।
ककर कण्ठमे रागिनीक मधु रस बसि गेले॥
स्वयं बनल शैशव गीतक जे चरम अन्तरा।
प्रश्न-चिह्न उपमाक, एक उत्तरे उत्तरा॥

प्रवेशिका:

बारह वर्ष बिताय नाचि बन-वन सब नाचो।
देश-कोश केर एहन सुयश सुनि पांडव पांचो॥
अयला सोचि विचारि तेरहम वितबय सांचो।
वर्ष विषम अज्ञात छूत-छल केर छल आँचो॥
(आइ विराट-नगरहुक यश केर होयत जांचो।
की रस दै’ अछि देखक थिक रचना रुचि काँचो॥)