उत्साह / बाबा बैद्यनाथ झा
लक्ष्य सामने बुला रहा है,
पाने की हो चाह।
कार्य अगर प्रारम्भ करें तो,
रखना है उत्साह॥
पहले मन में चिन्तन कर लें,
सोचें ठोस उपाय।
देखें निज सामर्थ्य सदा ही,
लें गुणियों से राय।
क्या-क्या बाधा आ सकती है,
उस पर करें विचार।
भलीभाँति संभव दिखता तो,
हो जाएँ तैयार।
उद्यम से पर्वत को भी हम,
दे सकते हैं ढाह।
कार्य अगर प्रारम्भ करें तो,
रखना है उत्साह॥
अकर्मण्य रोता रहता है,
बन जाता लाचार।
उसको ही सहना पड़ता है,
सब दिन अत्याचार।
लगने लगता क्रमशः उसको,
अपना जीवन भार।
कर देता मानव तन को वह,
गलती से बेकार।
वही समझने लगता थक कर,
बड़ी कठिन है राह।
कार्य अगर प्रारम्भ करें तो,
रखना है उत्साह॥
नहीं असंभव कुछ भी जग में,
ले मानव जब ठान।
हो कटिबद्ध मार्ग पर चलता,
रखे लक्ष्य पर ध्यान।
साहस धैर्य और चतुराई,
को रखकर अनिवार्य।
दीर्घसूत्रता कभी नहीं हो,
जीवन में स्वीकार्य।
कार्यसिद्धि होते ही सारे,
करने लगते वाह।
कार्य अगर प्रारम्भ करें तो,
रखना है उत्साह॥