भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदासी के महीनों में / टोमास ट्रान्सटोमर
Kavita Kosh से
					
										
					
					उदासी के महीनों में 
केवल तुमसे प्यार करते समय ही 
खुशी झिलमिलाई जीवन में 
जैसे जुगनू जलता है और बुझता है, जलता है और बुझता है 
और इन झलकियों में 
अँधेरे में भी हमें पता चल जाता है 
जैतून के पेड़ों के बीच उसकी उड़ान का 
उदासी के महीनों में आत्मा सिमटी पड़ी रही, बेजान 
मगर देह गई सीधे तुम्हारे पास 
गरजता रहा रात में आकाश 
चोरी-चोरी हमने दुह लिया ब्रह्माण्ड को 
और बचे रहे 
(अनुवाद : मनोज पटेल)
	
	