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उदासी क्या ऐसी भी होती है ? / गगन गिल

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उसने सोचा
आज पेड़ आकाश के गले लग कर रोए हैं
अच्छा हुआ
गुबार निकल गया,
अब सहज-प्रसन्न होंगे

उसने देखा
पेड़ों ने उदासी में
ज़मीन छोड़ दी थी
वे किसी भी वक़्त
गिर सकते थे

उसने सुनीं
पेड़ों के तिड़तिड़ाकर गिरने
और धरती के यतीम होकर
रोने की आवाज़ें

उसने सोचा-
उदासी क्या ऐसी भी होती है ?

1978