भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदासी क्या ऐसी भी होती है ? / गगन गिल
Kavita Kosh से
उसने सोचा
आज पेड़ आकाश के गले लग कर रोए हैं
अच्छा हुआ
गुबार निकल गया,
अब सहज-प्रसन्न होंगे
उसने देखा
पेड़ों ने उदासी में
ज़मीन छोड़ दी थी
वे किसी भी वक़्त
गिर सकते थे
उसने सुनीं
पेड़ों के तिड़तिड़ाकर गिरने
और धरती के यतीम होकर
रोने की आवाज़ें
उसने सोचा-
उदासी क्या ऐसी भी होती है ?
1978