भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदासी में डूबा क़मर कुछ न पूछो / उषा यादव उषा
Kavita Kosh से
उदासी में डूबा क़मर<ref>चाँद</ref> कुछ न पूछो
लहू से ज़मीं क्यों है तर कुछ न पूछो
हुआ हिज्र कैसे बसर कुछ न पूछो
तग़ाफुल उमीदे सहर कुछ न पूछो
कि बिछड़न का अब तो असर कुछ न पूछो
उठे दर्द आठों पहर कुछ न पूछो
वो उतरे ख़यालों में जब धीरे-धीरे
सितम यादें ढाती हैं फिर कुछ न पूछो
दुखी करती है रंजो-ग़म की ये दुनिया
अज़ल से है क्यों अश्के तर कुछ न पूछो
कहाँ जाए दिल छोड़कर उनका दर भी
उमीदी-सी अश्के नज़र कुछ न पूछो
परिन्दे न पत्ते न थका कोई राही
उदास अब हैं ठूँठे शजर कुछ न पूछो
शब्दार्थ
<references/>