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उदासी में डूबा क़मर कुछ न पूछो / उषा यादव उषा

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उदासी में डूबा क़मर<ref>चाँद</ref> कुछ न पूछो
लहू से ज़मीं क्यों है तर कुछ न पूछो

हुआ हिज्र कैसे बसर कुछ न पूछो
तग़ाफुल उमीदे सहर कुछ न पूछो
 
कि बिछड़न का अब तो असर कुछ न पूछो
उठे दर्द आठों पहर कुछ न पूछो
 
वो उतरे ख़यालों में जब धीरे-धीरे
सितम यादें ढाती हैं फिर कुछ न पूछो
 
दुखी करती है रंजो-ग़म की ये दुनिया
अज़ल से है क्यों अश्के तर कुछ न पूछो
 
कहाँ जाए दिल छोड़कर उनका दर भी
उमीदी-सी अश्के नज़र कुछ न पूछो
 
परिन्दे न पत्ते न थका कोई राही
उदास अब हैं ठूँठे शजर कुछ न पूछो
             

शब्दार्थ
<references/>