भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उदासी में डूब जाता है / देवी नागरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़्यालों ख़्वाब में ही महफिलें सजाता है|
और उसके बाद उदासी में डूब जाता है|


वो चाहता है के नज़्दीक रहूँ मैं उसके,
क़रीब जाऊँ तो फिर फ़ासले बढ़ाता है|


कुछ ऐसे भाए हैं रस्तों के पचोख़म उसको,
क़रीब जाके भी मंज़िल से लौट आता है|


किसी ज़ुबान के शब्दों से उसको नफ़रत है,
किसी के धर्म पे उँगली भी वो उठाता है|


वो रूठ जाता है यूँ भी कभी कभी मुझसे,
कभी कभी तो मिरे नाज़ भी उठाता है|