उदास आंख जब झुकल रहल।
लोर अटक क रूकल रहल॥
कहे के बात हजार रहे।
जुबान भीतरी ढुकल रहल॥
बात के छीछा-लेदर में।
सांच केन्हु पर छुपल रहल॥
भीतर-बाहर एक्के जइसन।
बात सुनइत ऊ जरल रहल॥
घर-परिवार के बोझा लेले।
हरदम ओक्कर मन थकल रहल॥
उदास आंख जब झुकल रहल।
लोर अटक क रूकल रहल॥
कहे के बात हजार रहे।
जुबान भीतरी ढुकल रहल॥
बात के छीछा-लेदर में।
सांच केन्हु पर छुपल रहल॥
भीतर-बाहर एक्के जइसन।
बात सुनइत ऊ जरल रहल॥
घर-परिवार के बोझा लेले।
हरदम ओक्कर मन थकल रहल॥