भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदास कविता / मुकेश कुमार सिन्हा
Kavita Kosh से
मैं भी लिखना चाहता हूँ
एक कविता उदासी पर
पाब्ला नेरुदा की तरह!
उकेरुंगा पन्नो पर
अंधकार, दर्द, व तिरस्कार
दर्द व घुटन का लबादा ओढ़ कर
रचूँगा शब्दचित्र
अश्कों भरी स्याही से
पर, मेरे अंदर की सोच
कभी कलम की नोक से
फूटती है मुस्कान
तो कभी दाँत दिखाते
झिलमिलाते सितारे
क्या जरूरी है उदास होना
एक उदास कविता के सृजन हेतु!
चलो काटो चिकोटी
या मारो थप्पड़
शायद ऐसे ही उदास सोच जन्में
या फिर सोचता हूँ वो चेहरा
हाँ वही!!
मेरे असफल प्रेम का प्रतीक!!
अब तो लिख पाऊँगा न!!
एक उदास कविता!!