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उदास खुशियाँ / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
आज दिल फिर उदास हैं
अकसर मेरे हाथ यही लगता है
ख़ुशियों का मुझसे कोई ज़्यादा सरोकार नहीं
वो आती है, कमबख़्त जाने के लिए
हर बार मेरे ख़्वाब-ऐ-नक्श बदलने के लिए
अब दिल को राहत-ऐ-दीदार का इंतजार फिर से रहेगा
सहमे से ख़्वाब फिर से देखें जाएँगे
मुस्कानों की नूर-ऐ-लहर का फिर होगा इंतजार
दहकते दिल को फिर होगा जोश-ओ-अंगार
पर आखिर कब तक चलेगा यह सिलसिला
शायद जब तक ये साँसे चले?
जब तक इस जि़ंदगी की लौ जले
एक उम्र गुजर चुकी है इन गमों के साये में
बाक़ी भी कट जाएगी खुशियों के इंतजार में...