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उदास दुनिया / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
कल की रात बहुत गीली थी
तुम उदास थीं क्या
चलो सूरज की दीवार पर
कल की रात को कुछ देर बिछा दें
तुम अपनी हथेलियों को खोल लेना
जो धूप तुम्हारे उंगलियों के बीच से छन कर आएगी
हो सकता है वह सुब्हा लाए
जो सोख ले उदासी का गीलापन।
इस रात का
और तमाम उदास रातों का गीलापन सूखना
बहुत ज़रूरी है
मुझे उदास दुनिया अच्छी नहीं लगती दोस्त।