उदास धुनें / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / लैंग्स्टन ह्यूज़
द वियरी ब्ल्यूज़
गाते हुए उदास टूटी धुन,
झूम-झूम आगे-पीछे था मधुर क्रन्दन,
सुना मैंने नीग्रो का गायन।
उस रात लेनॉक्स एवेन्यू में
पुरानी गैस बत्ती के फीके मन्द उजाले में
थी उसकी सुस्त थिरकन...
थी उसकी
सुस्त थिरकन...
थी उन
उदास गीतों की धुन।
पड़ते हाथी दाँत की कुंजियों पर
उसके काले हाथ
अभागा पियानो करता
मधुर स्वर में विलाप।
बजती उदास धुनें !
अपने कमजोर स्टूल पर
आगे-पीछे वह डोलता
मूढ़ संगीतकार की तरह
दुख भरी टूटी-फूटी धुन सुनाता।
बजती मधुर उदास धुनें !
आ रहीं ये
काले मनुष्य की आत्मा से।
बजती उदास धुनें !
गहन गीत लय में,
विषाद भरे स्वर में
सुना मैंने उस नीग्रो को गाते,
पुराने पियानो को विलाप करते —
“इस भरी दुनिया में कोई नहीं मेरा,
सिवाय मेरे अपने
कोई नहीं मेरा।
अपनी उदासियाँ अब मैं छोड़ दूँगा,
अपनी मुसीबतें उठाकर अलमारी में रख दूँगा।’’
थप, थप, थप,
फर्श पर थिरके पैर उसके।
छेड़े कुछ तार, फिर गाए और गीत उसने —
मेरे पास हैं उदास धुनें
और नहीं हो सकता मैं सन्तुष्ट।
पास हैं उदास धुनें
और नहीं हो सकता सन्तुष्ट —
नहीं हो सकता मैं ख़ुश
मर जाने को हूँ इच्छुक।’’
और देर रात
वह गाता रहा गीत दुख भरे।
बुझ गया चाँद
और बुझ गए सितारे।
गायक अब रुका,
फिर चला गया सोने
पर दिमाग में ध्वनित होती रहीं उदास धुनें।
वह सोया मानो हो मृत,
मानो सोई चट्टानें।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’