भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उदास नहीं / गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बस एक चुप-सी लगी है, नहीं उदास नहीं
कहीं पे साँस रुकी है, नहीं उदास नहीं

कोई अनोखी नहीं ऐसी ज़िंदगी लेकिन
मिली जो, ख़ूब मिली है, नहीं उदास नहीं

सहर भी, रात भी, दोपहर भी मिली लेकिन
हमीं ने शाम चुनी है, नहीं उदास नहीं

बस एक चुप-सी लगी है, नहीं उदास नहीं
कहीं पे साँस रुकी है, नहीं उदास नहीं।