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उदास साँझ / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
पहले से उदास होती है उदास साँझ जब
वह पूछती है हमारी आत्मा से
अपनी उदासी का कारण, कभी अर्थ।
निकल पड़ते ही हम वापस
अपने जीवन की पगडंडियों पर पुरानी ओर,
प्राचीन दिशा, ढूँढ़ते हुए यातना,
बिछोह ओर प्रेम के धुँधलाए रत्न।
कहीं भी पहुँचें, जाएँ किसी भी दिशा,
उलीच डालें अपनी अंजलि का आत्माजल,
ढूँढ़ पाएँ कितने भी सुंदर तर्क बेचकर
अपने जीवन का समकाल,
इतना तो तय है फिलहाल,
पहले से उदास होती है उदास साँझ जब -
पूछती है हमारी आत्मा से अर्थ और कारण।