उद्बोधन / गीत विजय के / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
फिर आज हमारे जीवन में
संकट की घड़ियाँ आई हैं।
फिर आज हमारे प्रिय पथ में,
आपत्ति घटाएँ छाई हैं॥
फिर आज हमारे प्राणों में
ज्वालाओं का कम्पन छाया,
फिर आज हमारे जीवन में
मचली पड़ती तरुणाई है॥
फिर आज युद्ध के लिये हमें
करनी होगी सब तैयारी।
फिर आज कीर्ति के लिये हमें
सहनी होगी विपदा भारी॥
फिर आज आन के लिये हमें
भरना है खप्पर चण्डी का,
फिर आज देश की वेदी पर
है चढ़ने की आई बारी॥
हम सभी आज आराम छोड़
कर्त्तव्य मार्ग पर जायेंगे।
हम सभी आज तलवारों को
हँस-हँस कर गले लगायेंगे॥
हम आज दिखा देंगे जग को
संघर्ष हमें कितना प्रिय है।
हम आज सभी मिल कर अपने
झण्डे की जय-जय गायेंगे॥
देखेगी दुनिया चकित हुई
हम दीवानों की टोली को।
काँपेगी भय से रिपु-सेना
सुन कर वीरों की बोली को॥
हम निर्भय सीना तान चलेंगे
रणक्षेत्र की ओर सभी।
फिर देव सुमन बरसायेंगे
लख भाल विजय की रोली को॥
अब लक्ष्य हमारा एक रहे
अब ध्येय हमारा एक रहे।
प्रण एक रहे अब हम सबका
अब एक हमारी टेक रहे॥
हम आपस के मतभेदों की
दीवार बनाना बन्द करें।
मत रहें अनेकों की चाहे
लेकिन पथ अपना एक रहे॥
हम सब भारत माँ के बेटे
भारत माँ सबकी माता है।
फिर एक सदृश ही हम सबका
उसके प्राणों से नाता है॥
हम सभी अभय हो रहते हें
उसके अंचल की छाया में।
वह मूर्तिमान जीवन सबका
वह सबकी भाग्य विधाता है॥
आओ सब आज प्रतिज्ञा कर,
बलि के पथ को अब स्वीकारें।
भयभीत न हों आशंका से,
वज्राघातों की ललकारें॥
अपने साहस बल विक्रम से
चीनी दुष्टों का नाम मिटा।
ऊँची स्वदेश की साख करें
विजयी हो जय-जय उच्चारें॥