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उधार / मुदित श्रीवास्तव

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मुझे चाहिए
एक पहाड़, उधार
जिसके अंतिम छोर तक
गूंज सकती हो मेरी आवाज़
जिसके काँधें पर
सर रखता हो बादलों का गुच्छा
और रोता हो ज़ार-ज़ार

एक नदी, उधार
जिसके किनारे घण्टों बैठकर
पानी में करूँ पैर तर
जिसके दोनों ही किनारे हों
सात समंदर पार

एक पेड़, उधार
जिसकी शाखाएँ
चाहती हैं मुझसे गले लगना
जिसकी छांव तले
बसा सकता हूँ, पूरा संसार

एक फूल, उधार
जिसको मैं तुम्हारे बालों से निकालकर
फिर उसी पौधे में लगा सकूँ
जिस पर एक तितली का
करता था वह इतंज़ार!

यही सब मुझे जीने के लिए
चाहिए उधार!