भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उधार / संगीता कुजारा टाक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवाओं में जो नमी है
मेरे आँसुओं से है

ख़ुश्क़ रेत में
धँसते पाँव!
यह रेगिस्तान
मेरे संघर्षों की गाथा है

सूखे पत्तों की
खड़खड़ाहट यूँ ही नहीं,
मेरी न्यौछावर जवानी की
कसमसाहट है

आसमान छूते
चिनार के पेड़ों ने
मेरे सपनों से
चुराया है अपना क़द

उड़ते पंछी जो हैं,
मेरे ही हौसलों से है
इनकी उड़ान

सुनो,
सबने लिया है कुछ न कुछ
उधार मुझसे...

एक औरत से!