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उनका पुराना कर्ज़ / नरेश चंद्रकर

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वे बिल्डर
ठेकेदार
बड़े हुकुमरान तो नहीं थे

उनके हिस्से की जि‍तनी थी साँसें, ली उन्होनें
जि‍तने झेलने थे दुख-द्वंद्व, झेल गए
जि‍तनी नापनी थीं पैरों तले की ज़मीन, नाप ली उन्होनें

उन्होनें कब कहा कि‍सी से
गोल-गोल घुमावदार चक्कदार सीढ़ियाँ
ब्रह्मराक्षस की बावड़ी
वहाँ का अँधेरा
वहाँ का आकाश में टँगे रहने वाला टेढ़े मुँह का चाँद उनका है

हाँफने से उनकी हाँफती थी कमीज़
दुख से दुखी होती थी नसें
पसीने से भीग जाता था रक्त

कब कहा उन्होनें
बौद्धिक संपदाओं में शामि‍ल रखो मुझे
कब उठाया शोर पहचानो-पहचानो का उन्होनें
कब चाहा इतना अधि‍क चौबीस घंटे गलबहियों में डाले रहे कोई उन्हे

उनके चर्चित चि‍त्र को देखकर तो नहीं लगता
वे वंश परंपरा समृद्ध करने में लगे रहें होंगे
बल्कि उन्होनें अपना तेजस्वी जीवन जीया
और गँवा कर जा चुके यहाँ से

अब क्यों समवेत स्वर में कोई गाए
मुक्तिबोध मुक्तिबोध मुक्तिबोध
(वि‍शेष कर उन्हें पढ़े बि‍ना)

क्या सच में भी पुराना कर्ज़ था कई लोगों का उन पर
जि‍से उतारे बि‍ना
चले गए वे यहाँ से !!