भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उनकी आवाज़ बुलाती है हर क़दम के साथ / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
उनकी आवाज़ बुलाती है हर क़दम के साथ
ज़िन्दगी दौड़ती जाती है हर क़दम के साथ
कोई यह भी तो कहो इसका नशा कैसा है
यह जो प्याली बढ़ी आती है हर क़दम के साथ
कारवाँ यों तो हज़ारों ही जा रहे उस ओर
दूर मंज़िल हुई जाती है हर क़दम के साथ
ज़िन्दगी हमको पिलाती है ज़हर के प्याले
और पायल भी बजाती है हर क़दम के साथ
आप रंगों से भरी डाल पे फूलें न, गुलाब!
सर भी नागिन ये उठाती है हर क़दम के साथ