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उनकी काफ़िर अदा से डरता हूँ / अब्दुल मजीम ‘महश्र’
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उनकी काफ़िर अदा से डरता हूँ
आज दिल की सज़ा से डरता हूँ
जानता हूँ कि मौत बरहक़ है
जाने क्यूँ मैं कज़ा से डरता हूँ
रहजनों से बच भी जाऊँगा
आज तक रहनुमा से डरता हूँ
घर के आँगन में जिसके डरे हैं
मग़रबी इस हवा से डरता हूँ
अहले-दुनिया का डर नहीं मुझको
रोज़े-‘महशर’ ख़ुदा से डरता हूँ